-राजेश बैरागी-_
ग्रेटर नोएडा। क्या अदालतें बिना किसी ठोस आधार के प्राधिकरणों को अधिग्रहित भूमि पर जाने से रोक सकती हैं? जिला न्यायालय गौतमबुद्धनगर में आजकल एक ऐसा ही स्थगनादेश चर्चाओं में है जिसमें वादकारी ने भूमि का कोई खसरा नंबर उल्लेख नहीं किया है और अदालत ने बिना खसरा नंबर की वादकारी की 14 हजार वर्गमीटर भूमि पर प्राधिकरण को किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से रोक दिया गया है।
यह मामला ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा अर्जित गांव मायचा से संबंधित बताया जा रहा है। यहां संचालित एक निजी स्कूल मालिक ने अपनी भूमि को प्राधिकरण से बचाने के लिए जिला न्यायालय गौतमबुद्धनगर में वाद दायर किया है। चूंकि प्राधिकरण द्वारा अपनी अर्जित भूमि पर कभी भी कोई विकास कार्य कराने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है और अर्जित भूमि पर अवैध रूप से किए गए कब्जे को ध्वस्त किया जा सकता है इसलिए वादकारी ने प्राधिकरण की किसी भी प्रकार की कार्रवाई पर स्थगनादेश की मांग की। अदालत ने प्राधिकरण को जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया। परंतु विवादित भूमि के खसरा संख्या व नक्शा नजरी जैसा कुछ भी वादपत्र में उल्लेख न होने के कारण प्राधिकरण जवाब देने में असमर्थ रहा। अभी दो सप्ताह पहले अचानक अदालत में इस मामले में तेजी आ गई जो अमूमन अन्य चलने वाले मामलों में नहीं आती है। प्राधिकरण के जवाब देने और आपत्ति दाखिल करने के अवसरों को समाप्त कर दिया गया और दायर वाद को मेरिट पर खारिज करने के प्रार्थना पत्र को लंबित रखते हुए वादकारी की 14 हजार वर्गमीटर भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी हो गया।यह आदेश जिला न्यायालय गौतमबुद्धनगर में अधिवक्ताओं में चर्चा का विषय बना हुआ है।यह पूछा जा रहा है कि आखिर बिना खसरा संख्या और लोकेशन के कोई आदेश कैसे दिया जा सकता है। बताया जा रहा है कि संबंधित न्यायिक अधिकारी का शीघ्र ही स्थानांतरण होने वाला है।





