यात्रा वृत्तांत: क्या कश्मीर में हालात बेहतर है?

_-राजेश बैरागी-_
श्रीनगर (कश्मीर) के लाल चौक पर सनातन धर्म प्रताप सभा द्वारा संचालित शान से सीना उठाए एक बहुमंजिली इमारत यात्री निवास और उसके भीतर मां दुर्गा का मंदिर। यहां अयोध्या से सपरिवार आकर रह रहे पंडित जी 21 वर्षों से सनातन धर्म की अलख जगा रहे हैं। लाल चौक के विषय में सब जानते हैं कि यह श्रीनगर का मुस्लिम बहुल सबसे भीड़भाड़ वाला व्यवसायिक स्थल है। यहां तिरंगा फहराने के लिए तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। आज वहां पर्यटक और स्थानीय लोग आने जाने वाली सड़कों के बीच डाली गई बेंचों पर आराम से बैठकर बाजार का नजारा करते हैं।सीआरपीएफ की उपस्थिति और आवागमन होता रहता है, इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि किसी अनहोनी की बिल्कुल आशंका नहीं है परंतु आमतौर पर सभी शांति चाहते हैं।डल झील के ऊपर पहाड़ी पर शंकराचार्य मंदिर जाते हुए उम्रदराज ऑटो चालक गुलाम नबी ने बताया कि आतंकियों के भय से उन्हें राज बाग वाला पुश्तैनी मकान छोड़ना पड़ा था।जब आतंकी घटनाओं का जोर था तो काम-धंधा छोड़कर घर में रहना पड़ता था।वह क्रोधित होकर कहता है कि कश्मीर के जितने भी नेता हैं, सबको किसी पुराने पुल पर खड़ा कर उड़ा देना चाहिए।उसका मानना है कि इन्हीं की वजह से आतंकवाद था।वह मिट्टी का तेल, सिगड़ी और कुछ सुविधाएं न मिलने से मोदी सरकार से भी खुश नहीं है। उससे और अन्य लोगों से बातचीत करते हुए यह तथ्य सामने आया कि तमाम विकास कार्यों के बावजूद भाजपा के लिए घाटी की सहानुभूति नहीं है। पीडीपी का भी वजूद नहीं है।नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का घाटी में जनाधार बचा हुआ है। परंतु इन सबसे अधिक यदि कोई शालीन चेहरा वहां है तो वह गुलाम नबी आजाद हैं। उनके लिए किसी ने भी मुंह नहीं बिचकाया। भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर क्या गुलाम नबी आजाद को जीत हासिल होगी? इस प्रश्न पर अधिकांश लोग चुप्पी साध लेते हैं। श्रीनगर से विदा लेते हुए मैं यही सोच रहा था कि लोकतंत्र में लोकप्रियता का पैमाना क्या है?’सबका साथ-सबका विकास’ का नारा किसे आकर्षित करता है? और यदि ऐसा है तो फिर भाजपा हिंदुत्व का नारा क्यों लगाती है और तमाम विकास कार्यों और शांति स्थापना के बावजूद कश्मीर घाटी के लोगों को भाजपा फूटी आंख भी क्यों नहीं सुहाती है?