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अयोध्या* का समझ में आता है, बनारस का क्या? *बनारस* में तो लल्लू सिंह नहीं

*अयोध्या* का समझ में आता है, बनारस का क्या? *बनारस* में तो लल्लू सिंह नहीं थे?

 

असल में कांग्रेस (इंडी गठबंधन) ने दोनों हाथों से धन लुटाने का वादा किया और दूसरी तरफ मोदी का मूलमंत्र है *ना खाऊंगा ना खाने दूंगा*। ऐसे में लोग लोभी हो ही जाते हैं। इसी लोभ का इस्तेमाल कर *आप* ने पहले दिल्ली, फिर पंजाब में सरकार बनाई। ये दोनों देश के सबसे सम्पन्न क्षेत्र हैं। जब यहां के लोगों को फ्रीबीज़ आकर्षित कर सकता है तो देश अभी इतना मैच्योर नहीं हुआ जो *टकाटक* आते धन को नजरंदाज कर दे। सच यही है कि लोग लालची हैं और उन्हें फ्री का माल, सरकारी नौकरी (जहां काम न करना पड़े अर्थात मक्कारी), लोन माफी यानी उधारी, और अफजाल अंसारी चाहिए; विकासोन्मुख सरकार नहीं। विकास से घर के खर्चे बढ़ते हैं। *इंडी गठबंधन* ने इस खर्चे का विकल्प दिया और एनडीए को झटका देने में कुछ हद तक कामयाब भी हुआ। शेष मोह-माया है।

 

हां, इन सबके बीच *इवीएम* की इज्जत बच गई है।

रंजन पांडे