भारत की उत्तरी सीमा, लद्दाख का जनहीन क्षेत्र 15,000 फिट से ऊँची बर्फ से ढके पर्वतों, दरों के बीच जहाँ कि सामान्य नागरिक सुविधाओं के उपलब्ध होने की कल्पना तक नहीं की जा सकती, वहाँ सदैव की भाँति उस दिन भी देश की सीमा के सजग प्रहरी केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवान अपने नियमित गश्त पर निकले थे।
गश्त के दौरान अचानक उन्हें लगा कि वे शत्रु से घिर चुके हैं। चीनी सैनिकों ने छलपूर्वक हमारे क्षेत्र में आकर हमारे ही सिपाहियों को पकड़ने के लिये ‘एम्बुश’ लगाया था।
चीनियों ने दावा किया कि वह क्षेत्र उनका है पर भारतीय पुलिस के जवान, जो कि अपने परिजनों को छोड़ सुख-सुविधा से दूर उस निर्जन क्षेत्र में मातृभूमि की रक्षा का प्रण लेकर आये थे, अपनी मातृभूमि का एक इंच टुकड़ा भी शत्रु को कैसे सौंप देते। प्राण देकर भी मातृभूमि की रक्षा करने की भारतीय बहादुरों की परम्परा पर उन्होंने आंच नहीं आने दी तथा साधारण शस्त्रों के सहारे ही ये जवान स्वचालित रायफलों व मोर्टारों से लैस चीनियों से भिड़ गये।
इस प्रकार भारतीय पुलिस के दस बहादुर जवानों ने मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी । इस घटना का समाचार पाकर सारा राष्ट्र स्तब्ध रह गया। मातृभूमि की रक्षा के लिये प्राणों तक का उत्सर्ग कर देने वाले बहादुरों का बलिदान सदैव हमें अपने कर्तव्यों के प्रति दृढ़ रहने की प्रेरणा देता है।
इन्हीं वीर जवानों की याद में प्रत्येक बर्ष 21 अक्टूबर को सम्पूर्ण भारत के पुलिस जन वीरगति को प्राप्त हुए अपने साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ‘शत्-शत् नमन’ उन बहादुरों को जिनके लिये कर्तव्य पालन प्राणों से भी अधिक प्रिय रहा।