लखनऊ के तारीखी इंडियन कॉफी पर वक्त की धूल जमने से लखनऊ की आवाज़ नहीं थमी। यहां की रौनक़ों ने चार क़दम आगे बढ़ कर जर्नलिस्ट कैफ़े में डेरा जमा लिया है। अटल चौक (हज़रतगंज चौराहे) से मुख्यमंत्री योगी निवास (फाइव केडी) के दरम्यान पार्क रोड पर जर्नलिस्ट कैफे में इंडियन कॉफी हाउस की आत्मा बस गई है। यहां लखनऊ गुनगुनाता है, बोलता है, चहकता है। चाय और कॉफी की चुस्कियों के साथ यहां मुख्तलिफ ख्यालों का गुलदस्ता महकता है। कला, संस्कृति, साहित्य और सियासत का अतीत,वर्तमान और भविष्य गूंजता है। दिल्ली की कुर्सी का रास्ता लखनऊ तय करता है, और लखनऊ की कुर्सी (फाइव केडी) के चंद की दूरी पर ये विश्लेषण होते हैं कि लखनऊ की कुर्सी से दिल्ली की कुर्सी में कितना फासला है।
जर्नलिस्ट कैफे के सामने सिविल अस्पताल में बीमार लोगों को चंगा करने का मेडिकल तिलिस्म चलता है तो दूसरी तरफ फ्रैंकफिन इंस्टीट्यूट में आकाश की उड़ाने भरने वाले हवाई जहाज के मुसाफिरों की मेहमाननवाजी की ख़ातिरदारी और तहज़ीब के हुनर सिखाए जाते हैं। यानी लखनऊ के दिल हज़रतगंज का ये ख़ुसूसी (विशिष्ट) ठिकाना संपूर्ण लखनऊ दर्शन कराता है।
इन्दिरा गांधी,अटल बिहारी वाजपेई,मजाज़, यशपाल, अमृतलाल नागर, आचार्य नरेन्द्र देव,चंद्रशेखर, वीर बहादुर सिंह, मुलायम सिंह यादव, लाल जी टंडन… जैसी सियासी, अदबी तमाम हस्तियों की खुशबू और गुफ्तगू से मुअत्तर (महकते) इंडियन काफी हाउस का माज़ी जदीद (आज के ) जर्नलिस्ट कैफे में दिखाई देने लगा है। कभी यहां प्रणव रॉय-राधिका रॉय लोगों से मुखातिब होते नजर आते हैं तो कभी कोई और बड़ी हस्ती दिखाई देती है। प्रमोद गोस्वामी, गोविंद पंत राजू, सूर्यकुमार शुक्ला, ज्ञानेंद्र शुक्ला, संतोष कुमार, नवल कांत सिन्हा, खुर्रम निज़ामी जैसी ख़ास हस्तियों का हुजूम इस कैफे को तारीखी बनाने पर आमादा है। पत्रकारों की पंचायतों ने जर्नलिस्ट कैफे के नाम की सार्थकता पर मोहर लगा दी है।
कैमरे चौकन्ना रहते है, वीडियो जर्नलिस्ट मुस्तैद रहते है।
गुजिश्ता लखनऊ के तस्किरे से लेकर शहर के मौजूदा हालात ग़ौर-ओ-फिक्र मिनटों में दुनिया तक पहुंच जाती है। आजतक और तमाम न्यूज चैनल सियासी ख्याल और दिग्गज सहाफियों की भविष्यवाणियों को देश दुनिया तक पहुंचाते हैं। लखनऊ के कलमकारों, पत्रकारों, शायरों की किताबें भी जर्नलिस्ट कैफे में डिस्प्ले हैं।